Bihar News : चार साल की उम्र में पिता खोए, बंटवारे में मिले मात्र 7 रुपये. अब लिख डाली 15 करोड़ की किताब, जानिए कौन हैं रत्नेश्वर

Bihar News : बिहार के रत्नेश्वर की उम्र महज चार साल थी जब उनके पिता गुजर गए. बंटवारे में महज 7 रूपये मिले. अब 15 करोड़ की पुस्तक लिख डाली है.......पढ़िए आगे

Bihar News : चार साल की उम्र में पिता खोए, बंटवारे में मिले
15 करोड़ की पुस्तक - फोटो : SOCIAL MEDIA

Patna : 41वें पटना पुस्तक मेले में इस साल सबसे ज़्यादा सुर्खियों में रही पुस्तक है ‘मैं’, जिसकी कीमत 15 करोड़ रुपये बताई जा रही है और इसे दुनिया की सबसे महंगी पुस्तक माना जा रहा है। इस पुस्तक की एक ही प्रति है और इसे कड़ी सुरक्षा के बीच प्रदर्शित किया जा रहा है। लेखक रत्नेश्वर ने News4Nation को बताया कि यह ग्रंथ उनके आध्यात्मिक अनुभवों का परिणाम है, जिसे उन्होंने अपने वन प्रवास के दौरान प्राप्त दिव्य ज्ञान के आधार पर लिखा। रत्नेश्वर के अनुसार, डेढ़ वर्ष के वनवास में वे अपने “आध्यात्मिक साथी” श्रीकृष्ण की साक्षात उपस्थिति का अनुभव करते रहे। इस अवधि में उन्हें “विश्वास से साक्षात्कार और साक्षात्कार से मणिकार के साथ एकात्मक अवस्था तक” की अनुभूति हुई। उन्होंने कहा कि उन्होंने महत् से अंधकार, अंधकार से प्रकाश और प्रकाश से पुनः अंधकार की अनंत यात्रा को अनुभव किया। उनके शब्दों में—“परिष्कृत ‘मैं’ अपनी शाश्वत यात्रा में कर्मण्य-स्मृति के प्रति जागरूक रहता है। इसी स्मृति ने मुझे खरबों वर्षों की यात्रा कराई, अनगिनत रूपों और चेतना के स्तरों में परिष्कृत होते हुए।”

लेखक का दावा

लेखक का दावा है कि उन्होंने अनगिनत कल्पों की यात्रा की है और इन्हीं स्मृतियों से इस ग्रंथ का उदय हुआ। रत्नेश्वर ने बताया कि यह अनुभव उन्होंने ब्रह्मलोक में जाकर प्राप्त किए, जहाँ वे 21 दिनों तक स्थितप्रज्ञ अवस्था में रहे। उन्होंने कहा कि उन्होंने रासलीला का प्रत्यक्ष दर्शन किया और उनके मुख से निकले शब्द स्वयं ही मूर्त होने लगे। वे संसार छोड़ना चाहते थे, परंतु गुरु की आज्ञा से वापस लौटा दिए गए। रत्नेश्वर के अनुसार 6–7 सितंबर 2006 को प्रातः 3:00 बजे से 6:24 बजे के शुभ ‘रत्न मुहूर्त’ में उन्होंने यह पूरा ग्रंथ 3 घंटे 24 मिनट में लिखा। उनके अनुसार यह एक ऐसी कथा है जिसमें मृत्यु का अस्तित्व नहीं, केवल “मैं” का योग है—कर्मयोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग और भक्तियोग का संगम। वे कहते हैं कि यह वही अवस्था है जहां सभी दुख समाप्त हो जाते हैं और मनुष्य ईश्वर के साक्षात्कार का परम आनंद अनुभव करता है।

कौन हैं रत्नेश्वर?

1966 में जन्मे रत्नेश्वर बचपन से ही संघर्षों से घिरे रहे। चार साल की उम्र में पिता का निधन हो गया। दसवीं की परीक्षा के समय परिवार के बंटवारे में उनकी झोली में सिर्फ 7 रुपये बचे। एक समय ऐसा भी था जब आजीविका के लिए उन्हें सत्तू-नमक-प्याज पर गुजारा करना पड़ता था। उन्होंने बताया कि मां के गहने बेचकर 10,000 रुपये के कर्ज की भरपाई करनी पड़ी। खेत तक रोज 8 किलोमीटर पैदल चलकर जाना उनकी मजबूरी थी।

लखीसराय के रत्नेश्वर

लखीसराय के बड़हिया में पले-बढ़े रत्नेश्वर को बचपन में ही कहानी कहने का शौक था। स्कूल में उन्हें ‘कहानी मास्टर’ कहा जाता था। बिना तैयारी के वे बच्चों और शिक्षकों को कहानी सुना देते थे। बाद में उच्च शिक्षा के लिए वे नागपुर गए। 22 वर्ष की उम्र में उनकी कहानी ‘मैं जयचंद नहीं’ एक प्रसिद्ध पत्रिका में छपी और खूब सराही गई। यही कहानी उन्हें पत्रकारिता तक ले आई। वे एक हिंदी दैनिक में प्रशिक्षु पत्रकार बने। कठिन दौर में बिना छाते के भी तेज़ बारिश में दफ्तर पहुंचने की उनकी ईमानदारी से प्रभावित होकर संपादक ने उन्हें नियुक्त किया। अखबार में अधिक समय नहीं बिताया, लेकिन लेखन उनका जुनून बना रहा। बाद में वे मास कम्युनिकेशन के शिक्षक बने और पटना विश्वविद्यालय, रांची विश्वविद्यालय, BHU, दिल्ली विश्वविद्यालय और IIMC में अतिथि व्याख्याता रहे। साल 2006 में वे मुंबई गए और टीवी धारावाहिक ‘मानो या ना मानो’ के लिए पटकथा लेखन किया। उनकी किताब ‘जीत का जादू’ बेस्टसेलर रही और हिंदी व अंग्रेजी संस्करण की लाखों प्रतियां बिकीं। उनकी दूसरी पुस्तक ‘रेखना मेरी जान’ पर अंतरराष्ट्रीय फिल्म बनने की भी चर्चा है।

पुस्तक मेले में भारी भीड़

पटना पुस्तक मेले में ‘मैं’ की केवल एक प्रति हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध है। इसे विशेष सुरक्षा में रखा गया है, लेकिन लोग इसके साथ सेल्फी ले सकते हैं। आयोजकों के अनुसार इस बार मेले में 6 लाख से अधिक आगंतुकों के आने की संभावना है। उद्देश्य है—युवाओं को किताबों से दोबारा जोड़ना। लेखक रत्नेश्वर 7 दिसंबर दोपहर 3 बजे ‘ग्रंथ उदय’ विषय पर पाठकों से संवाद करेंगे। उनका कहना है कि “यह पुस्तक नहीं, एक धर्मग्रंथ है, और इसे बेचा नहीं जा सकता क्योंकि इसकी यही एकमात्र प्रति है।”

कमलेश की रिपोर्ट