रायबरेली लोकसभा सीट से पहली बार राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी सांसद बने . यहां से पहली बार राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं. सांसद फिरोज गांधी ने अपनी ही पार्टी कांग्रेस की ही सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर कई बार हमला बोला. सांसद बनने के बाद कुछ साल तक तो फिरोज गांधी संसद में पीछे की बेंच पर चुपचाप बैठे रहा करते थे लेकिन, जब 6 दिसंबर, 1955 को उन्हें पहली बार सदन में भाषण देने का मौका मिला तो उन्होंने नेहरु सरकार की धज्जियां उड़ा दीं.
जीवन बीमा विधेयक पर बहस के दौरान पिरोज गांधी ने दो घंटे के भाषण में अपने ससुर जवाहर लाल नेहरु सरकार के मंत्री की धज्जी उड़ा दी थी. फिरोज गांधी ने डालमिया-जैन समूह के स्वामित्व वाली भारत इंश्योरेंस कंपनी के 22,00,000 रुपये की गड़बड़ी का खुलासा किया. फिरोज के भाषण के आधार पर कोर्ट में मामला चला. डालमिया-जैन ग्रुप के संस्थापक रामकृष्ण डालमिया को दो साल की जेल हुई.
फ़िरोज के कारण हीं जून 1956 में भारतीय जीवन बीमा अधिनियम पारित किया गया तो लगभग 250 बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और भारतीय जीवन बीमा निगम में विलय कर दिया गया. तेरह साल बाद, प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने उनके नक्शेकदम पर चलते हुए चौदह प्राइवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया.
फिरोज गांधी के जीवन में ऐसे मौके भी आये जब उन्हें प्रधानमंत्री नेहरू से लड़ना तक पड़ा. नेहरु प्रधानमंत्री ही नहीं, उनके ससुर भी थे. फिरोज गांदी के कारण तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी को नेहरु मंत्रिमंडल से इस्तीफा तक देना पड़ा. फिरोज ने मूंधड़ा स्कैंडल का मामला सदन में उठाया तो खलबली मच गई. हरिदास मूंधड़ा ने सट्टेबाजी और फंड और शेयरों के हेरफेर के माध्यम से कई भारतीय कंपनियों का नियंत्रण और स्वामित्व हासिल कर लिया था. मूंधड़ा मामला भी बीमा क्षेत्र से जुड़ा हुआ था. जीवन बीमा निगम ने हरिदास मूंधड़ा से जुड़े उद्यमों में एक कोरड़ 26 लाख 86हजार रुपये का निवेश किया था. इसके लिए एलआईसी ने 55 लाख जीवन-बीमा पॉलिसीधारकों के प्रीमियम का पैसा इस्तेमाल किया था और शेयर भी बाजार भाव से महंगा खरीदा था.
फ़िरोज गांधी ने हरिदास मूंधड़ा के निवेश कर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि ये निवेश उस दिन किए गए थे जब कलकत्ता और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज बंद थे. फिरोज ने संसद में कहा था कि मैं न चाहते हुए भी इस दुखद निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यह मूंधड़ा की मदद करने का एक तरीका था, जो उस समय वित्तीय कठिनाइयों में थे. फिरोज गांधी के दबाव के कारण नेहरु सरकार को जांच समिति बनानी पड़ी. बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमसी छागला जांच समिति के अध्यक्ष बनाए गए. फिरोज उस कमेटी में पहले गवाह के तौर पर पेश हुए.फ़िरोज का कहना था कि हरिदास मूंधड़ा द्वारा एलआईसी को दिए गए कुछ शेयर जाली थे. जज छागला ने पाया कि फ़िरोज के आरोप सही थे और हरिदास मूंधड़ा को 22 साल की जेल हुई और डील का संवैधानिक दायित्व टी.टी. कृष्णामाचारी पर डाला गया. टी.टी. कृष्णामाचारी को नेहरु कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा. एक वो समय था जब दामाद फिरोज ससुर नेहरु सरकार की नीतियों का विरोध किया और मंत्री तक को इस्तीफा देना पड़ा.